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09:12, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
का बा तहरा-हमरा में
जिनिगी प्रेम-ककहरा में
जीत-हार सब धोखा हऽ
कुछ नइखे एह झगड़ा में
धन-दौलत सब तू ले लऽ
माई हमरा बखरा में
चिन्हीं कइसे केहू के
सौ चेहरा इक चेहरा में
गाय कसाई के घर में
कुतिया ए॰ सी॰ कमरा में
हमरे खातिर पागल तू
अइसन का बा हमरा में
मत मारऽ कंकड़-पत्थर
हमरा मन के पोखरा में
'भावुक' के भी राखऽ तू
कतहूँ अपना हियरा में
<poem>