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09:27, 29 अक्टूबर 2010 KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
या त परबत बने या त जन्नत बने
जिन्दगी के इहे दूगो सूरत बने
ख्वाब कवनो तराशीं कबो, यार, हम
बात का बा जे तहरे ऊ मूरत बने
दिल के पिंजड़ा मे कैदी बनल ख्वाब के
का पता कब रिहाई के सूरत बने
मन के सब साध पूरा ना होखे कबो
सइ गो सपना में एगो हकीकत बने
सब गिला भूल के हाथ में हाथ लऽ
का पता कब आ केकर जरूरत बने
<poem>