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बूढ़ी बेरिया / पवन करण
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|रचनाकार=
पवन करण
|संग्रह=स्त्री मेरे भीतर /
पवन करण
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<Poem>
टोकती नहीं
स्कूल जाते समय बच्चों को
लौटते वक़्त उन्हें
पास बुलाती है
बूढ़ी बेरिया
उनसे करती है
बेरों की भाषा में
खट्टी-मीठी बातें
उनके प्रेम में जीवन-भर
अभिभूत
माँ-सी बेरिया
रख ही नहीं पाती याद
बच्चों ने उस पर
कब कितने
पत्थर उछाले
</poem>
अनिल जनविजय
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