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शब्द / कन्हैया लाल सेठिया
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06:00, 1 नवम्बर 2010
नहीं पकड़ी
ऊपर उठी हुई
अनुगूंज
अनुगूँज
बहरे आकाश ने
लेकिन
पकड़ लिया उसे
गली में बैठे हुए
अंधे
अँधे
सूरदास ने ।
'''अनुवाद : मोहन आलोक'''
</poem>
अनिल जनविजय
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