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ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा / गुलज़ार
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08:47, 4 नवम्बर 2010
<poem>
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफिला साथ और
सफर
सफ़र
तन्हा
अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस
कदर
क़दर
तन्हा
रात भर बोलते हैं सन्नाटे
द्विजेन्द्र द्विज
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