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वह एक स्त्री / कुमार सुरेश

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इस शहर से
जहाँ मेरी नौकरी
दीवाली पर या किसी और वक्त वक़्त
लौटता उस शहर
जहाँ एक स्त्री
मेरे आने भर से बेशर्त खुश ख़ुश होती
उसकी बूढी आँखों की चमक देखते बनती
चाहती इतना
कुछ पल बैठू बैठूँ उसके पास
और वह पूछे
इतना दुबला क्यों हुआ
ठीक से खाता -पीता क्यों नहीं
बहू कैसी है उसे लाया क्यों नहीं
जहाँ सुस्ताता कुछ पल
बापस वापस लौटता मेरे शहर इस बिस्वास विश्वास के साथ की फालतू फ़ालतू नहीं में
मेरा भी कुछ मूल्य है
कमसे कम एक स्त्री है
जो मेरा सही मूल्य पहचानती है
 
 
 
</poem>
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