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माँ / भाग २ / मुनव्वर राना

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|सारणी=माँ / मुनव्वर राना
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इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
 
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
 
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
 
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
 
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
 
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
 
पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
 
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है
 
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं
 
किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है
 
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
 
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
 
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
 
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
 
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
 
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
 
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
 
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
 
अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
 
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता
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