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सौत सिखाई वादळी इण में लाव ना लैस।। 21।।
नये-नये वेष धर तू समीप ही सिर पर घूम रही है। बादली, तुम्हें सौत ने सिखा कर भेजा है, इसमें जरा भी संषय संशय नही है।
छोड़ मरोड़, छिपा मती धण रो देख हवाल।
सैण-सनैसो बादळी सुणा-सुणा तत्काल्।। 23।।
तु सज-धज कर सामने आती और धीमी-धीमी चाल चलती है। बादली, साजन का संदेषा संदेशा तत्काल् सुना दे।
धौळी रूई फैल सी, घुळ-घुळ भूरी होय।
चहचहाती चिड़िया धूलिस्नान कर रही है। अब बादलियों ने आसमान में तंबु सा तान लिया है।
दूर खितिज पर बादळयंा बादळयां च्यारूं दिस में गाज।
जाणै कम्मर बांधली आभै वरसण आज ।। 28 ।।
दूर क्षितिज पर बादलियां है और चारों दिषाएं दिशाएं गरज रही है, मानों आज आकाष आकाश ने बरसने के लिये कमर कस ली है।
आभ अमूझी बादळी घरां अमूझी नार ।
धरां अमूझ्या धोरिया परदेसां भरतार ।। 29 ।।
आकाष आकाश में बादली अमूझ रही है, घरों में स्त्रियां अमूझ रही है। धरा पर टीले अमूझ रहे है और परदेषों परदेशों में पति अमूझ रहे है।
गांव-गांव में बादळी सुणा सनेसो गाज।
इंदर वूठण आवियो तूठण मूरधरआज।। 30।।
बादली, गांव-गांव में गरज कर यह सदेंषा सदेंशा सुनादे कि आज मरूधरा को प्रसन्न करने के लिये इन्द्र बरसने आये है।
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