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|रचनाकार=बिरजीस राशिद आरफ़ी
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रेत के कनस्तर से पानी डालने वालेग़म की रूदाद<ref>कहानी</ref> सुनाने नहीं देती दुनियाबस्तियाँ जलाते हैं पानी डालने वालेज़ुल्म करती है बताने नहीं देती दुनिया
अहतियात मुझको बदनाम भी करती है ये मयनोशी<ref>सावधानीमदिरापान</ref> लाज़िम है दोस्त और दुश्मन सेपरज़ह्र खींच लेते हैं पानी डालने वालेहोश में आओ तो आने नहीं देती दुनिया
ताज़ एक फल खाने की तरह अपने घर बनाओ, फ़नकारो!पादाश<ref>सज़ा</ref> में जन्नत खो दीअब कभी न आएँगे हाथ काटने वालेज़ह्र खाता हूँ तो खाने नहीं देती दुनिया
ऐ मेरे वतन वालो तुम जो एक हो जाओयह अमीरों की चहेती है अमीर इसके ग़ुलामटुकड़े-टुकड़े हो जाएँ हमको बाँटने वालेहम ग़रीबों को ख़ज़ाने नहीं देती दुनिया
आज जिनके जिस्मों पर रेशमीन कपड़े हैंबस ये अच्छा है कि इन्सान को मरने बादकल थे मेरे ऐबों पर पर्दा डालने वालेजिस्म का बोझ उठाने नहीं देती दुनिया
ऐ मेरे ख़ुदा उनको उम्रे-जाविदाँ<ref>कभी न ख़त्म होने लम्बी उम्र</ref> देनाजो बुज़ुर्ग ज़िन्दा हैं मुझको डाँटने वालेमालूम है दुनिया की हक़ीक़त लेकिन और कुछ छोड़ के जाऊँ तो जाने नहीं ‘राशिद’ तेरी ख़ुशनसीबी हैख़ूब प्यार देते हैं तुझको चाहने वालेदेती दुनिया
रोज़ करते हैं वो मुझसे ये बहाने ‘राशिद’
आ तो जाऊँ मगर आने नहीं देती दुनिया
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