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दस दोहे (21-30) / चंद्रसिंह बिरकाली
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19:43, 16 नवम्बर 2010
बरस घटा बण, बादळी मुरधर कानी जोय ।।24।।
सफेद
सफ़ेद
रूई के
फाऐ
फाये-
सी
तु
तू
घुल-घुल कर भूरी हो जाती है । बादली, मरूधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो ।
जळहर ऊंचा आविया बोल रया जल-काग ।
अनिल जनविजय
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