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03:23, 17 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवारुण भट्टाचार्य
|संग्रह=यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश / नवारुण भट्टाचार्य
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<poem>
मैं वही आदमी हूँ
जिसके कंधे पर डूबेगा सूरज
सीने पर बटन नहीं है कई रातों से
धूल-भरे कॉलर झूलती हुई आस्तीनें
हवा में उड़ते हुए बाल
जेब से अधजली सिगरेट निकालकर कहूँगा
दादा, ज़रा माचिस देंगे?
आदमी अगर शरीफ़ हुआ
तो हाथ में सिगरेट लिए हुए
माचिस बढ़ाएगा आगे
मैं उसके हाथ की घड़ी को ताकूँगा
आँखों में जल उठेगा रेडियम
मैंने तुझसे मुहब्बत करके सनम-लेन-देन
अख़बार में नहीं
पुलिस रोज़नामचे में
मेरी
दो तस्वीरें होंगी- एक हँसता चेहरा,एक साइड फ़ेस
और नीचे लिक्खा होगा- स्नैच केस
पेट-भर पेट्रोल पीकर
हल्लागाड़ी दौड़ेगी मेरी खोज में
सर झुकाए शहर मुझे तलाश करेगा
मैं वही आदमी हूँ
सीने पर बटन नहीं है कई रातों से
जिसके कंधे पर डूबेगा सूरज
</poem>