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अजमतों के बोझ से घबरा गए / संजय मिश्रा 'शौक'
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08:57, 17 नवम्बर 2010
छीन ली जब ख्वाहिशों की ज़िन्दगी
पाँव खुद चादर के अंदर आ गए </poem>
Alka sarwat mishra
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