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09:41, 17 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवारुण भट्टाचार्य
|संग्रह=यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश / नवारुण भट्टाचार्य
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<poem>
मैं एक छोटे-से शहर में जाकर
रेकार्ड या पैरांबुलेटर बेच सकता हूँ
मुँह पर आँसुओं का रूमाल बाँध कर मैं
बच्चों की खिलौना-रेल में डकैती कर सकता हूँ
मैं प्लेटफ़ार्म पर चाक से लिख सकता हूँ
पैरों से मिट जाने वाली कविता
लेकिन दो लड़कियों से प्रेम करके
मैंने जितना कष्ट पाया था
उसे भूल नहीं सकता कभी।
मैं अपने सीने में शब्दों का छुरा
घोंप सकता हूँ
मैं बहुत ऊँची चिमनी के सहारे चढ़कर
नीचे बायलर की आग में कूद सकता हूँ
मैं समुद्र में कमीज़ धोकर
पहाड़ की हवा में सुखा सकता हूँ
लेकिन दो लड़कियों को बहुत कष्ट से
मैंने इतना प्यार किया था
उसे भूल नहीं सकता कभी।
मैं क्रुद्ध होकर सांघातिक सशस्त्र
राजनीतिक तूफ़ान खड़ा कर सकता हूँ
ठंडे सिर की शिराएँ नोंचकर
तार-कटी ट्राम की तरह थम सकता हूँ
चालाकी के ब्रश से रगड़-रगड़कर
जूते की तरह चेहरे को भी चमका सकता हूँ
लेकिन उन दो लड़कियों से प्रेम करके
मेरा ख़ून बर्फ़ और आग बन गया था
इसे नहीं भूल सकता कभी।
</poem>