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मैं अकेला / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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08:19, 18 नवम्बर 2010
देखता हूँ, आ रही
मेरे दिवस की सान्ध्य बेला ।
पके आधे बाल मेरे
हुए निष्प्रभ गाल मेरे,
चाल मेरी मन्द होती आ रही,
हट रहा मेला ।
जानता हूँ, नदी-झरने
जो मुझे थे पार करने,
अनिल जनविजय
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