<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक : फूलों का गजरामैं अकेला<br> '''रचनाकार:''' [[रमेश तैलंगसूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]</td>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
बहनामैं अकेला;देखता हूँ, तेरी चोटी मेंआ रहीफूलों का गजरा मेरे दिवस की सान्ध्य बेला ।
फूलों के गजरे नेपके आधे बाल मेरेघर-भर महकायाहुए निष्प्रभ गाल मेरे,बतलानाचाल मेरी मन्द होती आ रही, बतलानाकौन इसे लाया ?साँसों में छोड़ गयाख़ुशबू का लहरा हट रहा मेला ।
गजरे में फूल खिलेबेला-जुही केजानता हूँ,नदी-झरनेआँखों में तेरी हैंआँसू खुशी केजो मुझे थे पार करने,चेहरे पर बिखरा हैकर चुका हूँ, हँस रहा यह देख,जादू सुनहरा कोई नहीं भेला ।
तुझ पर ही नज़रें हैंशब्दार्थ: छोटे-बड़ों भेला = पुराने ढंग की,नावबात हुई बहना,आज क्या अनोखी ?क्या इसमें है कोईराज बड़ा गहरा ?
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