[[Category: दोहा]]
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आज कळायण ऊमटी छौडे खूब हळूस ।
सो-सो कोसां वरणसी करसी काळ विधूंस ।।41।।
आज काली घटा उमड़ी है, हल्के बादल खूब बिखर रहे हैं । यह सौ-सौ कोसों तक बरसेगी और अकाल का विध्वंस करेगी ।
आज कळायण ऊमटी छौडे खूब हळूस।दिन में रात जगावती वादळियां बरसात ।सो-सो कोसां वरणसी करसी काळ विधूंस।। 41।।कदै अमावस सी करै घट पूनम री रात ।।42 ।।
आज काली दिन को रात-सी बना देने वाली ये बरसात की बादलियाँ कभी-कभी पूर्णिमा की रात को भी घटा उमड़ी है, हल्के बादल खूब बिखर रहे है। यह सौकर अमावस्या-सौ कोसों तक बरसेगी और अकाल का विध्वंस करेगी।सी कर देती हैं ।
दिन में रात जगावती वादळियां बरसात।पी-पिहू बोल पपीहड़ां टी-टिहू टीटोडयांह ।कदै अमावस सी करै घट पूनम री रात।। 42 ।।पिहू-पिहू रव मोरियां हालै हूक जड़यांह ।।43।।
दिन को रात सी बना देने वाली ये बरसात पपीहे की बादलियां कभी तो अमावस्या सी कर देती है पी-पी, टिट्हरी की टी-टिहू और शिघ्र ही पूर्णिमा सी।मोर की ‘पिहू-पिहू‘ ध्वनि सुनकर हृदय की जड़े हिल उठी है ।
पीज्यूं-पिहू बोल पपीहड़ां टी-टिहू टीटोडयांह।ज्यूं मधरो गाजियो मनड़ो हुयो अधीर ।पिहू-पिहू रव मोरियां हालै हूक जड़यांह।। 43।।बीजल पळको मारतां चाली विडै़चीर ।।44।
पपीहे की पीज्यों-पीज्यों मधुर गर्जन हुआ मन अधीर हो उठा, टिट्भि बिजली की टी-टिहू और मोर की ‘पिहू-पिहू‘ ध्वनि सुनकर चमक के साथ ही तो हृदय की जड़े हिल उठी है।जैसे चिर गया ।
ज्यूं-ज्यूं मधरो गाजियो मनड़ो हुयो अधीर।ऊंडा टोक उळांडिया चूंखै में चमकी ।बीजल पळको मारतां चाली विडै़चीर।। 44।जाण बूझतां, बीजळी, जोड़ी भल ढूंढी ।।45।।
ज्यों ज्यों मधुर गर्जन हुआ मन अधीर हो उठा, बीजली की चमक के साथ ही तो हृदय में चीर चल गई। ऊंडा टोक उळांडिया चूंखै में चमकी।जाण बूझतां, बीजळी, जोड़ी भल ढूंढी।। 45।। गहरे घने बादलों को छोड़कर रूई से सफेद सफ़ेद बादल में चमकने वाली बिजली, तुने जान बुझकर तूने जानबूझकर यह क्या जोड़ी ढूंढी।ढूँढी ।
खिण दक्खण खिण उतर दिस खिण चोगरदीचट्।चोगरदीचट् ।कुण जाणै किण खोज में बीज झपाझप झट्।। 46।।झट् ।।46।।
एक क्षण दक्षिण में, एक क्षण उत्तर में और फिर क्षण भर में ही चारो और। ओर । कौन जाने किस खोज में , बिजली इतनी तेजी तेज़ी से भागदौड़ भाग-दौड़ कर रही है ?
पळ-पळ में पळका करै आभै भर्यो उजास।उजास ।जाणै प्रीतम-खोज में छाणै वीज अका्स।। 47।।अका्स ।।47।।
पल-पल में चमकती हुई बिजली से सारा आकाश उद्भासित हो रहा है, मानो प्रियतम की खोज मे बिजली आकाश को छान रही है।है ।
भूरी काळी बादली बीजळ रेख खिंचाय।खिंचाय ।जाण कसौटी ऊपरां सुवरण-रेख सुहाय।। 48।।सुहाय ।।48।।
भूरी और काली बादली में बिजली की रेखा -सी खिंच गई है, मानो कसौटी पर सोने की रेख सुहा रही हो।हो ।
जळ सो प्यारो जीव है कण सी कोमल काय।काय ।कुणसै कूणै बादळी, राखी वीजछिपाय।। 49।।वीजछिपाय ।।49।।
जल से बना तुम्हारा प्रिय जीवन है और धूलिकणों से बनी कोमल काया। काया । बादली, तुमने कौनसे कौन से कोने में बिजली जैसी चीज चीज़ को छिपा कर रक्खा है।है ।
सदा संजोण मोद में रह जळहर लिपटाय।लिपटाय ।विरहरण झुरै बीजळी, जिवड़ो मती जळाय।। 50।।जळाय ।।50।।
तु तू तो सदा संयोगिनी बन आनंद से जलधर के गले में लिपटी रहती है, पर विरहणी तो अकेली अमुझ रही है: इसका हृदय न जला।जला ।</poem>