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यह जल्लादों का उल्लास-मंच नहीं है मेरा देश
यह विस्तीर्ण शमशान नहीं है मेरा देश
यह रक्त रंजित कसाईघर नहीं है मेरा देशमैं छीन लाऊँगा अपने देशकोसीने मे‍ छिपा लूँगा कुहासे से भीगी कांस-संध्या और विसर्जनशरीर के चारों ओर जुगनुओं की कतारया पहाड़-पहाड़ झूम खीतीअनगिनत हृदय,हरियाली,रूपकथा,फूल-नारी-नदीएक-एक तारे का नाम लूँगाडोलती हुई हवा,धूप के नीचे चमकती मछली की आँख जैसा तालप्रेम जिससे मैं जन्म से छिटका हूँ कई प्रकाश-वर्ष दूरउसे भी बुलाउँगा पास क्रांति के उत्सव के दिन। हज़ारों वाट की चमकती रोशनी आँखों में फेंक रात-दिन जिरहनहीं मानतीनाख़ूनों में सुई बर की सिल पर लिटानानहीं मानतीनाक से ख़ून बहने तक उल्टे लटकानानहीं मानतीहोंठॊं पर बट दहकती सलाख़ से शरीर दाघअनानहीं मानतीधारदार चाबुक से क्षत-विक्षत लहूलुहान पीठ पर सहसा एल्कोहलनहीं मानतीनग्न देह पर इलेक्ट्रिक शाक कुत्सित विकृत यौन अत्याचारनहीं मानतीपीट-पीट हत्या कनपटी से रिवाल्वर सटाकर गोली मारना नहीं मानतीकविता नहीं मानती किसी बाधा कोकविता सशस्त्र है कविता स्वाधीन है कविता निर्भीक हैग़ौर से देखो: मायकोव्स्की,हिकमत,नेरुदा,अरागाँ, एलुआरहमने तुम्हारी कविता को हारने नहीं दियासमूचा देश मिलकर एक नया महाकाव्य लिखने की कोशिश में हैछापामार छंदों में रचे जा रहे हैं सारे अलंकार.........   
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