{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी }} {{KKCatGeet}}<poem>मैंने तोडा तोड़ा फूल, किसी ने कहा-
फूल की तरह जियो औ मरो
सदा इंसान।इंसान ।
भूलकर वसुधा का शृंगार,
बुझा दिया जब दीप, किसी ने कहा
दीप की तरह जलो, तम हरो
सदा इंसान।इंसान ।
रात से कहने मन की बात,
चंद्रमा चँद्रमा जागा सारी रात,
भूमि की सूनी डगर निहार,
डाल आंसू आँसू चुपके दो-चार
डूबने लगे नखत बेहाल
उसी क्षण-
छिपा गगन में चांदचाँद, किसी ने कहा-चांद चाँद की तरह, जलन तुम हरो
सदा इंसान।
सांससाँस-सी दुर्बल लहरें देख,
पवन ने लिखा जलद को लेख,
पपीहा की प्यासी आवाजआवाज़,
हिलाने लगी इंद्र का राज,
बरसे झुक-झुक मेघ, किसी ने कहा-
मेघ की तरह प्यास तुम हरो
सदा इंसान। इंसान ।
</poem>