Changes

सारी रात / रमानाथ अवस्थी

96 bytes added, 16:08, 21 नवम्बर 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी}}{{KKCatKavita‎}}{{KKCatGeet}}<poem>'''धीरे-धीरे बात करो सारी रात''' प्यार से ।
धीरे - धीरे बात करो सारी रात प्यार से । भोर- होते चाँद के ही साथ-साथ जाउँगाजाऊँगा
हो सका तो शाम को सितारों के संग आऊँगा
धीरे - धीरे ताप हरो प्यार के अंगार से |
तन का सिंगार तो हजार हज़ार बार होता हैकितु किंतु प्यार जीवन में एक बार होता हैधीरे -धीरे बूँद चुनो जिन्दगी ज़िन्दगी की धार से ।
कोई नहीं विश्व में जो प्यार बिना जी सके
और गीत गाने वाले अधरों को सी सके
धीरे -धीरे मीत खींचो प्राण के सितार से ।
देख -देख हमें तुम्हें चाँद गला जा रहा
क्योंकि प्यार से हमारा प्राण छला जा रहा
धीरे -धीरे प्राण ही निकाल लो दुलार से ।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,803
edits