|संग्रह=भटका मेघ / श्रीकांत वर्मा
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{{KKCatKavita}}<poem> वह चिड़िया जो मेरे आंगन आँगन में चिल्लाई,<br>मेरे सब पिछले जन्मों की<br>संगवारिनी-सी इस घर आई;<br>मैं उसका उपकार चुकाऊँ किन धानों से!!<br><br>
हर गुलाब को जिसने मेरे गीत सुनाए,<br>हर बादल को जिसने मेरा नाम बताया,<br>हर ऊषा को जिसने मेरी मालाएँ दीं,<br>हर पगडंडी पर जिसने मुझको दुहराया,<br>मैं उस चिड़िया को <br>दुहराउँ किन गानों से!!<br><br>
वह जो मेरी हर यात्रा में<br>मेरे आगे डोली,<br>अन्धकार में टेर पकड़ कर<br>जिसकी मैंने राह टटोली,<br>जिसने मुझको हर घाटी में,<br>हर घुमाव पर आवाज़ें दीं,<br>जो मेरे मन की चुप्पी का<br>डिम्ब फाड़ कर मुझ से बोली;<br>उसको वाणी दूँ?<br>किस मुख? किन अनुमानों से?<br><br>
वह जिसको मैंने अपनी <br>हर धड़कन में महसूस किया है<br>वह जिसने नदियाँ जी हैं<br>आकाश जिए हैं, खेत जिया है,<br>वह जो मेरे शब्द शब्द में<br>छिपी हुई है, बोल रही है,<br>वह जिसने दे अमृत मुझे<br>मेरे अनुभव का ज़हर पिया है,<br>मैं उसको उपमा दूँ, तो<br>किस नीलकंठ, किन उपमानों से??<br/poem>