Changes

नज़र में आजतक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
तेरे चेहरे  के अंदर दूसरा चेहरा नहीं अन्दर दूसरा  चेहरा नहीं निकला  
कहीं में डूबने  कहीं मैं डूबने  से बच न जाऊं, सोचकर ऐसा मेरे नजदीक  मेरे नज़दीक  से होकर कोई तिनका नहीं निकला  
ज़रा सी बात थी और कश्मकश कशमकश ऐसी कि मत पूछो भिखारी मुड़  गया और गया पर जेब से सिक्का नहीं निकला  
सड़क पर चोट खाकर आदमी ही था गिरा लेकिन
गुज़रती भीड़  का उससे कोई रिश्ता नहीं निकला 
जहाँ पर जिंदगी ज़िन्दगी की , यूँ कहें खैरात बंटती  थी उसी मंदिर से कल देखा कोई जिंदा नहीं कोई ज़िन्दा नहीं निकला  
</poem>  
112
edits