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15:29, 22 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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रचनाकार=सर्वत एम. जमाल
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<poem>
कोई मेरे बारे में सोचे
मेरे सपने देखे
मेरे मिलने पर
उसकी आँखें, बहुत कुछ
कह जाने का भाव दें
लेकिन जुबान बंद रहे
बहुत अच्छा लगता है.
तुम्हे भी
ऐसा ही
लगता होगा, ऐसे अवसरों पर.
लेकिन मैंने लोगों को
पूरी पूरी जिन्दगी
अपने भाग्य विधाताओं के बारे में
सोचते, सपने देखते पाया है
उनके सामने
उनकी आँखें
बहुत कुछ कह रही थीं
मांग रही थीं
परन्तु होंट नहीं खुले
खुल ही नहीं सके
तुम परेशान क्यों हो
यह प्रेम नहीं
भय नहीं
शोषण था- शोषण मात्र !!</poem>