गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
दस दोहे (91-100) / चंद्रसिंह बिरकाली
No change in size
,
08:42, 25 नवम्बर 2010
म्हांनै इतरो मोकळो आंखडल्यां रो चोर।। 94।।
बादलियों, हम तुम से विनय करती है कि चंद्रमा की तनिक तिरछी सी कोर दिखा दो। उस आंखों के चोर का इतना सा दर्शनही हमें पर्याप्त होगा।
चांद छिपायो बाद्ळयां धरा गमायो धीर।
आशिष पुरोहित
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits