इन्द्रधनस मिस भेजियो धरा धनख उण वेर।। 122।।
बादल फटने लग गए है चारों ओर जल-षेष शेष चू रहा है। इन्द्रधनुष के मिस उस समय धरा के लिए धनख (चीर) भेजा गया।
बण-ठण आई बादळी राची धर रंग-राग।
छींकै टीबी पर खड़या अड़वै कानी जोय।
पान खड़क्यां छींकला अ ऊं परछाळां होय।। 125।।
टीले पर खड़े हुए मृग, खेत में छाया पुरूष की ओर देखकर आंषकाजनित आंशकाजनित ‘छीं-छीं‘ ध्वनि कर रहे है और पत्ते के खड़कने का शब्द सुनते ही चौकड़ी साध जाते है।
आज सिधावो तो सिधो दीज्यो मती विसार।
गोळा छूट्या गोफियां गुपिया बादळियां।
ओळां मिस उळटाअया उल्टाईया फुर-फुर फांफड़ियां ।। 127।।
खेतो के रक्षकों ने गोफनों में डालकर जो पत्थर फेंके उन्हें बादलियों ने पकड़ लिया और ओलों के मिस पानी के झोंको के साथ उन्हें वापिस फेंक दिया।
इन ओलों से डंठल टूट जायेंगें और सारा अन्न झड़ जायेगा। इतना अच्छा समय हो गया है, अब फिर अकाल न कर देना।
सिधा-सिध अे ए बादळी बस सुरगां रै वास।
बरसाळै मत भूलजे तूं ही मुरधर-आस।। 130।।
।। सम्पूर्ण।।
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