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14:10, 26 नवम्बर 2010 अक्षरों में
खिले फूलों सी
रोज सांसों में महकती है।
ख्वाब में
आकर मुंडेरों पर
एक चिड़िया सी चहकती है।
बिना जाने
और पहचाने
साथ गीतों के सफर में है,
दूर तक
प्रतिबिम्ब कोई भी नहीं
मगर वो मेरी नजर में है,
एक जंगल सा
हमारा मन
वो पलाशों सी दहकती है।
बांसुरी
मैं होठ पर अपने
सुबह-शामों को सजाता हूं,
लोग मेरा
स्वर समझते हैं<br />
मैं उसी की धुन सुनाता हूं,<br />
बादलों से<br />
जब घिरा हो मन<br />
मोर पंखों सी थिरकती है।<br />
वो तितलियों<br />
और परियों सी<br />
उड़ा करती है फिजाओं में,<br />
वो क्षितिज पर<br />
इन्द्रधनुओं सी<br />
और हम उसके छलाओ में,<br />
एक हीरे की<br />
कनी बनकर<br />
वो अंधेरों में चमकती है।<br />
एक नीली<br />
पंखुरी पर फूल की<br />
होठ थे किसके गुलाबी दिख रहे,<br />
एक मुश्किल सा<br />
प्रणय का गीत<br />
सिर्फ यादों के सहारे लिख रहे,<br />
डायरी पर<br />
लिख रहा हूं मैं<br />
चूड़ियों सी वो खनकती है।<br />