गूगल अर्थ पर गाँव
धरा तरबूज दो फाँकगाँव खोजकर
महका करते थे मोहल्लेबड़ी खुश हुई बिटिया
एक टुकड़ा गाँवखिल गई बांछें
पींकऔर एक ही किलक ने उसकी बुला लिया रसोईघर में आटा गूंधती मां को। लिथड़े हाथों मां ने उसकी देखा बड़े कौतूहल से पूरा का पूरा गाँव। गली, तालाब, स्कूल अपना मौहल्ला और देख लिया घर भी अपना। बोली बिटिया-पींक बज इस पर दुनिया का हर गाँव, गली, बाजार, दरख्त, खेत, समुद्र सब दिख जाता है साफ-साफ। बड़ी जिज्ञासा और उमंग भर दिल में अपने पूछा उसकी मां ने- नानी का गाँव, घर भी दिखला देगी? माथापच्ची करते-करते खोज निकाला जब बिटिया ने तो हर्ष का पार नहीं रहा और बैठ गई निकट ही खाट पर, गड़ा दीं नजरें कम्प्यूटर स्क्रीन पर। यह बस-अड्डा, यह गली, यह चौगान और चौगान में इस दरख्त के पास वाला बड़ा-सा यह घर..... देर तक निहारती रही पींपाटीबिटिया की मां फिर टपक पड़ी दो बूँद आँखों से उसके, जिनमें अब तक थी एक सुनहरी चमक। नानी के घर में होती काश तेरी नानी भी पर... रुंध गया गला और कह पाई बस एक कहावत अपनी भाषा में सुना था जिसे कभी मां से अपनी- 'सासू बिना किस्यो सासरो अर मां बिना किस्यो पी'र।'