जागिए ब्रजराज कुंवर / सूरदास

जागिए ब्रजराज कुंवर कमल-कुसुम फूले।
कुमुद -बृंद संकुचित भए भृंग लता भूले॥
तमचुर खग करत रोर बोलत बनराई।
रांभति गो खरिकनि मैं बछरा हित धाई॥
विधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी।
सूर श्रीगोपाल उठौ परम मंगलकारी॥

राग विभास पर आधारित इस पद में सूरदास जी मातृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। माता यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को सुबह होने पर जगा रही है। वह कहती हैं कि हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। कमल पुष्प खिल गए हैं तथा कुमुद भी बंद हो गए हैं। (कुमुद रात्रि में ही खिलते हैं, क्योंकि इनका संबंध चंद्रमा से है) भ्रमर कमल-पुष्पों पर मंडाराने लगे हैं। सवेरा होने के प्रतीक मुर्गे बांग देने लगे हैं और पक्षियों व चिडि़यों का कलरव प्रारंभ हो गया है। सिंह की दहाड़ सुनाई देने लगी है। गोशाला में गउएं बछड़ों के लिए रंभा रही हैं अर्थात् दूध दुहने का समय हो गया है। चंद्रमा छुप गया है तथा सूर्य निकल आया है। नर-नारियां प्रात:कालीन गीत गा रहे हैं। अत: हे श्यामसुंदर! अब तुम उठ जाओ। सूरदास कहते हैं कि यशोदा बड़ी मनुहार करके श्रीगोपाल को जगा रही हैं, जो मंगल करने वाले हैं।

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