प्रेम की थिक?
नहि बुझैत छलहुँ
वा नहि बुझऽ चाहैत छलहुँ
मुदा एहि लहरिक तरंग पर
की अधिकार हमर?
हमरा बुझैत तऽ हम अथाह समूद्र !
समुद्र, हँ समुद्रे!
निठ्ठाह आत्माभिमान, संतुष्टि, पूर्णता
सँ संपन्न समुद्र
हमरा सँ सभक संबंध की?
नदी-समुद्रक!
सभक जल हमरामे
मिज्झर होइत छल
बिनो कोनो विक्षोभ उत्पन्न कयने!
कोशी-कमला-कावेरी-नर्मदा जकाँ
ने कोनो मंगोली ने आर्या ने द्राविड़ी!
टेम्स आ कोलाराडो जकाँ
थीर वा चंचल वा भयावह वा हाहाकारी!
सभकेँ हम संलीन कयने रही
अपना सकार में!
अमृत केँ आत्मा में रखने, शाश्वत
आ विष केँ एहि नाशवान
शरीरक कंठ में, शिव बनि कऽ!
मुदा हमर शिवा केँ की प्रयोजन
एहि दग्ध कंठक विष सँ ?
ओ तँ छलीह, छथि, रहतीह
एहि आत्माक आत्मा बनि कऽ
मुदा शरीर की?
एहि नाशवान शरीर केँ की?
ओहि हलाहल विष केँ की?
की उपाय?
विष सँ कंठ केँ सेदने सेदने
नीलकंठ भेने की ?
धारण कऽ लेलहुँ
मुदा आब शिवा के हमर?
ककरा सँ प्रेम हमर शाश्वत?
ककर जल हमरा में तरंग बनौलक?
हँ, तरंगे सँ तऽ हमर संबंध भेल
ज्वार उत्पन्न जे कयलनि प्रेमक
आ समाहित भेलीह फेर हमरामे!
कोनो आन नहि हमरे शिवा!
हमरा स्वयं केँ
गाम्भीर्यक प्रणेता
स्वचेतनाक अभिव्यक्ति बुझने की?
लहरि तऽ उठबे करत!
उठवे कयल,
कोनो आन वस्तु नहि हमरे शिवा!
हमर हाहाकारी आबाज
हमर संतुष्टिक आत्मालाप केँ
निर्विकार भावे शांत करैत
हमरे गंगा।
गंगासागरक गंगा!
कतेक थीर, कतेक पवित्र!
ओकरे प्रेम वेदनामे हम
विषक वेदना विसारने
निर्मल होइत रहैत छी
पवित्र भेल रहैत छी!