Last modified on 22 जून 2017, at 13:01

वे लोग / शिवशंकर मिश्र

वे लोग बड़े हैं, मत बोलो,
मत बोलो, उन को बुरा लगेगा!

वे जो करते हैं, करते हैं,
क्या तुम से कोई डरते हैं,
वे अपने मन के मालिक हैं,
जैसे जी चाहे चरते हैं;
सब के तुम्हारे भी उन का
कुछ बिगड़ न पाएगा, लेकिन
तुम नजर नहीं फिर आओगे,
जो उन का मन कल को बिगड़ेगा!

सब साधु-संत, गुंडे उन के,
बैठाए गली-गली चुनके,
मिट्टी चटवाते लोहे को,
सब लक्ष्यब्द्ध, पक्के धुन के;
यह लोकतंत्र तुम क्या जानो,
तुम क्या समझोगे राजनीति,
जो डरा वहीं मर गया और
मर जाएगा जो नहीं डरेगा!