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व्याकुलता / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

 
व्याकुलता
 (निराशा का चित्रण)
मिले उसी तरू के नीचे
मुझको रहने को
जिसमें आती हो कोयल
निश दिन रोने केा
जहाँ सदा पुतली में
भरी हुयी रहती हो
रस की बदली विरह कथा
को जो कहती हो
जहाँ बिछी दूर्वा हो,
जी भर कर रोने को
मिले उसी तरू के नीचे
मुझको रहने को।
(व्याकुलता कविता का अंश)