बाहर रोज़-ब-रोज़ बनता है
भीतर दिन-ब-दिन घटता है
मन से मन
आँखों से आँखें जुड़ती हैं
अक्षर से अक्षर मिलकर
मानो
सरित् सागर से
व्योम धरा से मिलता है
बाहर रोज़-ब-रोज़ बनता है
भीतर दिन-ब-दिन घटता है
बाहर रोज़-ब-रोज़ बनता है
भीतर दिन-ब-दिन घटता है
मन से मन
आँखों से आँखें जुड़ती हैं
अक्षर से अक्षर मिलकर
मानो
सरित् सागर से
व्योम धरा से मिलता है
बाहर रोज़-ब-रोज़ बनता है
भीतर दिन-ब-दिन घटता है