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शपथ / जोशना बनर्जी आडवानी

मेरे भीतर एक लड़की है
जो पन्नो से बनी है
तुम्हारे बाहर एक दुनिया है
जो ईश्वर ने रची है
ईश्वर तो ईस्ट इंडिया कंपनी थे
जिसे कुछ नरभक्षी खदेड़ चुके हैं
नरभक्षी तो भीड़ मे धंसा है
जिसने मीठी भाषा का अंगरखा पहनरखा है
अंगरखा के अंदर का हिस्सा
गांधारी रूपी पावनता भी ना देख सकी
पावनता हर सब्ज़ी वाला अपने
तराज़ू के नीचे चिपकाए गली गली फिरता है
तराज़ू अपने हाथ मे लिये देवी
गै़रकानूनी कानून को न्याय दिलाती है

इन सबके बीच
कवि शपथ लेते हैं कि वे अब कभी जन्म नही लेंगे