दुर्बल काया झुकी पीठ है, बूढ़ी शबरी राह निहारे
कब आएंगे राम हमारे
पैरों में कांटे चुभ जाते
चुनकर लाती रोज बेर है
जीवन शेष रहा है कितना
यम के घर में कहां देर है
कभी कभी सांसे गिनती है, और कभी गिनती है तारे
आज भोर कुछ नयी नयी है
कौआ पर्णकुटी पर बोला
कुछ आहट है पदचापों की
कुटिया का दरवाजा खोला
पतझर था ऋतुराज आ गया, आज राम हैं द्वार पधारे
कितनी देर लगाई तुमने
पूछ रही थी भीगी आंखें
पत्ती पत्ती झरते झरते
सूख गई तुलसी की शाखें
राघव की आंखें भर आयीं, हैं भगवन भक्तों से हारे