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शब्द / प्रवीण काश्‍यप

समयक प्रस्तर पर अक्षर उचरल
शब्द बनि गेल!
प्रकृति जीवनक हस्ताक्षर केलनि
शब्द बनि गेल!
मौनक नीरवता तोड़ि जागृति भेल
ओ शब्द बनि गेल!

शब्द तोहर सीमा की?
शब्द तोहर विस्तार की?

सुनल अछि अक्षर, शाश्वत
अनंत ब्रह्म छऽ तों शब्द;
सभ्यताक सत्त चिर समयक
संस्कृतिक निरंतर आनन्द छऽ तों शब्द!

कदाचित् हम किछु मानी
तोहर सीमा की?
तोहर विस्तार की?

स्वयोनि-स्वराट्-मुक्त
प्रकाशक स्वभाव छऽ तों शब्द!
स्वज्वलित-स्वपीड़ित-मूक
तेजसक तिरोभाव छऽ तों शब्द!

कोनो आर्त जनक कम्पित
स्वर छऽ तों शब्द
वा कोनो मधुमेही सेठक विवश
तृष्णा छऽ तों शब्द!

कदाचित् हम किछु मानी
तोहर सीमा की?
तोहर विस्तार की?

संपन्नता पोषित यौवन वल्लरी
आध चीर सँ बहार झलकैत अछि;
आधुनिकाक प्रमाद कम्पित अधर
स्वाधीनताक नव परिभाषा बनैत अछि!

विपन्नता शोषित मधु-देह-लतिका
असमर्थ वस्त्र, लज्जा ओ ढँकैत अछि!
अबलाक संवाद आंतकित नेत्र;
छिद्रान्वेषिक नब जिज्ञासा बनैत अछि!

शब्द तों मात्र अधरे पर छऽ?
कदाचित् हम किछु मानी
तोहर सीमा की?
तोहर विस्तार की?

युगल आलिंगनक एकाकार
हृदय धड़कनक आगार छऽ तों शब्द;
प्रेमिकाक प्रथम स्पर्श,
चेतनाक प्रथम प्रहार छऽ तों शब्द!

ललनाक सहज संकोचक
कामुक निगम छऽ तों शब्द
नव-विधवाक अतृप्त आकांक्षाक,
कठोर आगम छऽ तेां शब्द!

कदाचित् हम किछु मानी
शब्द!
तोहर सीमा की?
तोहर विस्तार की?