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शहर-2 / अम्बिका दत्त


गजब की फुर्ती है - इस शहर में
कि दिन !
सड़को पे सरपट दौड़ा करता है
गजब की आराम तलबी है - इस शहर में
हर शाम !
फुटपाथ पर हो पसर जाती है
बड़ी अव्यवस्था है - इस शहर में
यहाँ हर रात ! भटक जाती है
मेरी समझ में नही आता
यह शहर है - या सर्कस का खेमा ?
यहाँ हर रोशनी
लैम्प पोस्ट पर औंधी लटक जाती है
पर सबसे अजीब बात तो यह है मेरे दोस्त !
कि मैंने उस शहर को
कभी भी/
सुबह की अंगड़ाई लेते हुए नही देखा।