हे , ब्रह्माण्ड के भाल तिलक
त्रिनेत्र उज्ज्वल ,
पट बाघाम्बर , व्योम विषद ,
डमरू करे निनाद , ओम भास्वर ,
हे त्रिलोक के द्वारपाल त्रिशूल
तीखे फाल विषम |
है गूढ़ समाधि ध्यान , न चित चंचल ,
जटा – जूट से बहे गंग अपार ,
पवित्र , निर्मल , सलिला की धार |
प्रखर ताण्डव में भरकर आग ,
दुष्टों का करने को संहार |
हे त्रिलोक के स्वामी ,
मैं अभिनन्दन करती हूँ आज |