यह सरल सघन संक्षिप्त
और अन्तिम अभिव्यक्ति
चराचर की
वर्षा की अन्तिम बूँद
वायुमंडल में ही जो हुई लीन
अन्तिम आँसू
जो ढलते-ढलते ठहर गया
दो-जून न दे पाया रोटी
वह श्रम-सीकर
यह रक्तपात की एक छींट
यह बिन्दु-पात
यह चन्द्र सूर्य कन्दुक कदम्ब
की गोलाई
यह गणना का चरमोत्कर्ष
जो
होने और न होने की
सीमा रेखा पर गूँज रहा
वह महाशून्य !