तेरो तो गांवतड़ो देख लियो, अब तो गैला तूं गैल छोड़।
धोरां री धोली माटी रो,
हूं महल बणाया करतो हो।
माटी स्यूं म्हारी देही रो,
हूं रूप सजाया करतो हो।
चंदै नै मामो समझै हो,
फूलां स्यूं नेह बणेड़ो हो।
गोदी में खेल्या करतो हो,
सगलां रो नेड़ो नेड़ो हो।
कुचील बड़्यो तूं हिवड़ै में,
नैणा रो भाव बदल दीन्यो।
अंग परतंग फंफेड़ दियो,
काया में काट सबल कीन्यो।
नैणा री तीखी नजरां में,
जोबन री झांकी मदमाती।
हूं देखण लाग्यो फूलां में,
जोबण री आंख्यां शर्मीली।
हूं उलझग्यो तो उलझ गयो,
सुलझण रो नाम नहीं लीन्यो।
हूं जकड़ग्यो तो जकड़ रहयो,
उखड़ण रो नाम नहीं कीन्यो।
चंदा में देख्यो गौरवर्ण,
तारां में देखी तरूणाई।
झरणां में देखो छमू छनन,
संझ्या री देखी अरूणाई।
पायल झणकै ही पलकां में,
गालां री लाली मुलकै ही।
अलकां री अलहड़ अटखेल्यां,
निर्दय गालां नै चूमै ही।
नैणा नैणा स्यूं तार जोड़,
हिवड़ै रो प्यार पुंचावै ही।
बीं हार जीत री बाजी में,
जीवण रो सार बतावै ही।
हिय स्यूं हियो जुड़ा लीन्यो,
अधरां स्यूं अधर मिला देख्या।
ईं रस री लम्बी रातां हूं,
रस स्यूं रस सल्या देख्यां
मद री प्याली री मदिरा पीख्
हूं मन री प्यास बुझाई है।
मादक जोबन री लहरां में,
हूं नावां खूब चलाई है।
लाली री लाल सुखा लीनी,
काला री कालस ऊतरगी।
मुखड़ो बोलै हो बोदापो,
गौडा री गैलाई नीसरलो।
पण धाप नहीं हुई मन नै,
आ प्यास बुझी नहीं भैड़ी।
समझाऊं के जद समझ नहीं,
आ चढ़ चाली पैड़ी पैड़ी
बोलो बिलमायो बावलिया, ले ज्या मन रो तू मोल तोड़।
तेरा गांवतड़ो देख लियो, अब तो गैला तू गैल छोड़।
शायद आ बात नहीं हूंती
पण इण‘रो राम निसरग्यो हो।
आदम री अक्कल मारीजी,
दीयोड़ौ भाव बिसरग्यो हो।
मानव री सदा विजय रैंतो,
दानव रो नांव नहीं हूंतो।
पानव रैंतो आ सदा धरती,
गंगा रो नाम नहीं हूंतो।
आ स्वर्ग सदा धरती रैंती,
ओ नरक पड़यो खाली रैंतो
आ बहन सदा नारी होंती,
ना जाल अठै जाली रैंतो।
ओ काम सदा भटक्या करतो,
जद रती झेलती रंडापो।
अै लोभ क्रोध मद मोह सदा,
भूल्या फिरतो अपणो आपो।
शैतान मिनख नै तैं मार्यो,
ईं री अक्कल नै तूं काडी।
ओ मिनख गुलामी रो पुतलो,
तूं आंधी ईं पर काठी मांडी।
जै बात नहीं हूंती एहड़ी,
जौबन के लेंतो बूढ़ापो।
जे पाप धरा पै न आंतो,
सावण के सहंतो बोदापो।
जीवण रस री मदिरा प्याली,
फिर तो सदा भरी रहंती।
फूलां रो रूप नहीं गिरतो,
तारां स्यूं रात जड़ी रहंती।
मुंह पर सलां री लहरां पर,
फिर नाम नहीं होंतो जग।
अै छमू छनन री पायलियां,
बाज्यां करती फिर पग पग में
अै लाल लहरियां लहरांती,
काया रै गोल कपोलां पर
झूम्या करती फिर मलयानिल,
वन रै उपवन रै फूलां पर।
आ काया सदा हरी रहंती
पतझड़ के पत्ता झड़ लेंती।
लूंआ रै जीवण बादल नै,
यूं जला भुना नहीं बहंती।
हूं स्वयं अनन्त अनादि हो,
आ मौत मजूरी में रहंती।
हूं माया अर मायावी हो,
आ माया कहणै में रहंती।
ऊपर उमरी स्यूं आय‘र के,
मेरै जीवन नै ले ज्यान्तो।
हूं स्वयं मोक्ष रो वरदाता,
नित सर्वेष्वर ही कहलांतो।
अब तो धाप्यो तू घूमां स्यूं, म्हारै मन रो तूं मिनग मोड़।
तेरो गांवतड़ो देख लियो, अब तो गैला तू गैल छोड़।