जन्मदायिनी माँ से बढ़ कर है यह भारतमाता।
एक समान सभी के प्राणों का है उससे नाता॥
जिसकी पावनतम गोदी में हमने जीवन पाया।
जिसकी माटी से निर्मित है कंचन-सी यह काया॥
उसकी रक्षा करना है पहला कर्त्तव्य हमारा।
हमको अपने कर्त्तव्यों से करना नहीं किनारा॥
भाव यही भर कर मानस में धीर-वीर सेनानी।
जूझ गए जो युद्धस्ािल में हार न मन में मानी॥
एक बूँद भी बची रक्त की जब तक बाकी तन में।
लोहा लेते रहे बराबर ऋपु सेना से रण में॥
दाँत किये खट्टे दुश्मन के अपनी आन निभाई।
लड़ते-लड़ते साथ खुशी के अन्त वीरगति पाई॥
दाग़ न लगने दिया शान में, प्राण किये न्यौछावर।
जीवित रहते डिगे नहीं कर्त्तव्य-मार्ग से तिलभर॥
मातृभूमि की रक्षा में दी लुटा जिन्दगी फ़ानी।
स्वर्णाक्षर में अंकित होगी उनकी अमर कहानी॥
देश कभी उनके ऋण से हो उऋण नहीं पायेगा।
उनकी यश-गाथा इस धरती का कणकण गायेगा॥
दिया देश के लिए जिन्होंने अपना तन-मन-धन है।
श्रद्धा सहित राष्ट्र का उनको बारम्बार नमन है॥