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श्रद्धांजलि / राजीव रंजन

दर्द से भींगे-भींगे शब्द
बिखरा-बिखरा है अर्थ
उजड़े-उजड़े हैं भाव
सूखकर स्याही हो चुकी
काले से अब लाल ।
कलम भी बन चुकी है
सूखकर खंजर सी ।
फिर भी कविता की
लालसा ने कवि-मन
को बना दिया अमानवीय ।
कविता के लिए वह
सूखकर खंजर हो चुकी
कलम से बार-बार
हमला करता है
कोमल कागज के शरीर पर ।
और यह हमला तब तक
जारी रहता है जब तक
क्षत-विक्षत, लहू-लुहान
होकर वह मर नहीं जाता ।
यह हत्या है, सरासर
दिन-दहाड़े हत्या ।
लेकिन कवि-मन बड़ा शातिर है,
वह दर्द से भींगे शब्द से
मिटाकर हत्या की जगह
शहादत लिख देता है
फिर क्या लाल खून
लाल फूल हो जाते हैं श्रद्धांजलि के
और सिलसिला शुरू हो जाता है
श्रद्धांजलियों का सियासत के
तिरंगे में लिपटकर ।