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श्राप / सुरेन्द्र डी सोनी

तुम्हीं कर गए मुझे
बदनाम इतना कि तुम्हारे कफ़न के भीतर से
मुस्कराता हुआ
एक झूठ निकला बाहर और मँडराकर
एक-एक चेहरे पर
कुछ कहता रहा...
जबकि
मेरे आँसुओं की लड़ी से
टूटकर गिरे
बहुत सारे सच
सिसकते हुए
परिक्रमा ही करते रहे
तुम्हारे शव की...!