शब्द सताते रहे
सालों साल
बिछाते रहे एक
मायावी जाल
ख़ुद से बातें करना
ख़ाली दृश्य देख मुसकाना
अकथनीय पे झुँझलाना
उन्मत्त सी रहने लगी
जब तक कि मैंने लेखनी नहीं उठाई
शब्द सताते रहे
सालों साल
बिछाते रहे एक
मायावी जाल
ख़ुद से बातें करना
ख़ाली दृश्य देख मुसकाना
अकथनीय पे झुँझलाना
उन्मत्त सी रहने लगी
जब तक कि मैंने लेखनी नहीं उठाई