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संतों के चरण पड़े / कैलाश गौतम

संतों के चरण पड़े
रेत में कछार खो गये |

पौ फटते ही ग्रहण लगा
और उग्रह होते शाम हो गयी
जब से मरा भगीरथ गंगा
घड़ियालों के नाम हो गयी
आंगन में अजगर लेटे हैं
पथ के दावेदार खो गये |

हल्दी रंगे सगुन के चावल
राख हो गये हवन कुंड में
उजले धुले शहर गीतों के
झुलस रहे हैं धुआँ धुन्ध में
नये पराशर हुए अवतरित
कुहरे में भिनसार खो गये |

आश्वासन कोरे थे कितने
कितने वादे झूठे थे
ऐश महल में वही हैं कल जो
कोपभवन में रूठे थे
आज उन्हीं के गले ढोल है
कल जिनके त्यौहार खो गये |