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संवाद / संगीता शर्मा अधिकारी

आजकल नहीं बोलती ज़बान
नहीं सुनते कुछ कान
फिर भी दिन भर
बोलता रहता है मोबाइल

चलती रहती है उस पर
उंगलियां तेज रफ्तार
धारदार बेशुमार प्यार
और भी बहुत कुछ

हां, उसमे जज्ब हैं
बहुत सारे नंबर
दोस्तों-रिश्तेदारों
अपनो-गैरों के

लेकिन आजकल
बोलता बहुत है
नहीं बुलाता है, मोबाइल

आज
जगह ले ली है
संकोच ने अधिकार की
चुप्पी ने संवाद की।

सुनो
सुनो, यूं चुप न बैठो
फोन करो, बोलो, बतियाओ
करो झगड़ा, मन का गुबार हल्का
पर चुप्पी न साधो
दूरियां न बढ़ाओ।
सन्नाटे को तोड
घुटन के पहाड़ों के बीच से
संवाद का कोई पुल बनाओ
संवाद का कोई तो पुल बनाओ।