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संशय / सविता सिंह

कुछ भी हो सकता है आज
कोई आत्महत्या या मौत
कोई गिर सकता है अपनी ही साइकिल से
लिख सकता है ख़त आख़िरी
आज शाम से पहले ही आ सकती है रात
डराती-रिझाती
खोलती द्वार पश्चाताप और मोह का एक साथ
या गिर सकता है पुराना कोई पेड़
बिला वजह
पकड़ कर ले जा सकती है पुलिस
पड़ोस की नेक महिला को
धमका जा सकती हैं अपनी ही भूलें
ख़ुद को

अँधेरे मेरे हिस्से के
मन पर न लूँ कोई बोझ
संताप न भर दे इसके ख़ालीपन को
कोई छाये न इस पर घनी छाया बन
यह बना रहे मेरा
मेरे मुक्त रहने की संभावना-सा
मेरे ही संवाद से भरा
मेरे ही शब्दों पर निछावर

मन पर न करने दूँ राज
किसी देवता को
धर्म में नतमस्तक होने को तैयार
किसी सुख को जो हो दुख का ही पर्याय
मन पर न झेलूँ कोई वार
न रोऊँ अकेले किसी कोने में
निरीह न आँखें भरूँ करुणा के जल से
न डूबने दूँ पश्चात्ताप के पाताल में अपने को
सोचती हूँ इतना सोचने से
कटता जायेगा दिन और रात का निर्मम प्रहार मुझ पर
क्रमशः कम होते जायेंगे अँधेरे मेरे हिस्से के