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सखिया / मनोज कुमार ‘राही’

सुनो हे सखिया,
मोर पियवा बड़ी निरमोहिया
दूरदेश बसे पिया,
करै छै नौकरिया,
खत लिखी थकी गेलौं,
भेजै नाहीं पतियाँ
सुनोॅ हे सखिया

सोचीसोची जियरा,
धड़की मोरा जाय,
भइलै कौन कारा
मेरा पिया न आवै
सुनोॅ हे सखिया
मोर पिया

रहीरही मनवाँ में
उठै छै हिलोरवा,
पड़ल कोॅन विपतिया
आवै नै संदेशवा,
सुनोॅ हे सखिया
मोर पिया

नै जानूँ पर प्रीत में
पड़लै मोर सजनवाँ,
भुली गेलै हमरोॅ ‘प्रीति’
‘राही’ हाय रे करमवाँ,
सुनोॅ हे सखिया