मृत्यु नहीं होती
तो ईश्वर का भी अस्तित्व नहीं होता,
कभी नहीं करता
मानव
प्रारब्धवाद से समझौता !
ईश्वर प्रतीक है
ईश्वर प्रमाण है
मानव की लाचारी का,
मृत्यूपरान्त तैयारी का।
स्वर्ग-नरक का
सारा दर्शन-चिन्तन
कल्पित है,
मानव
मृत्यु-दूत की आहट से
हर क्षण आतंकित है,
रह-रह रोमांचित है !
मालूम है उसे —
‘मृत्यु सुनिश्चित है !’
इसीलिए पग-पग पर
आशंकित है !
यही नहीं
तथाकथित मर्त्यलोक से
नितान्त अपरिचित है;
वह।
अतः तभी तो
जाता है
ईश्वर की शरण में
पाने चिर-शान्ति मरण में !
अतः तभी तो
गाता है —
एक-मात्र
‘राम नाम सत्य है !’
अरे, जन्म-मृत्यु कुछ नहीं
उसी का
विनोद-क्रूर कृत्य है !