सज्दा किया सनम को मैं दिल के कनिश्त में
कह उस ख़ुदा से शैख़ जो है संगो-ख़िश्त में
गुज़रा है आबे-चश्म मेरे सर से बारहा
लेकिन न वो मिटा कि जो था सरनविश्त में
सज्दा किया सनम को मैं दिल के कनिश्त में
कह उस ख़ुदा से शैख़ जो है संगो-ख़िश्त में
गुज़रा है आबे-चश्म मेरे सर से बारहा
लेकिन न वो मिटा कि जो था सरनविश्त में