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सदस्य:Krishna kumar naaz

चाहत को आँसुओं के भँवर से बचा लिया
अच्छा किया कि आपने मुझको मना लिया

उसने भी करलीं अपनी ख़ताएँ सभी कुबूल
मैंने भी बढ़के उसको गले से लगा लिया

फिर एक और दोस्त बनाया है आपने
फिर एक और आपने दुश्मन बना लिया

जीवन हो जैसे कोई सफ़र धूप-छाँव का
रोया कभी मैं और कभी मुस्करा लिया

अहसान उसको याद दिला तो दिया मगर
खु़द को ही मैंने अपनी नज़र से गिरा लिया

दोनों तुनुकमिज़ाज थे, दोनों अना पसंद
आपस के रखरखाव ने रिश्ता बचा लिया लिया

चेहरों पे जिनके ‘नाज़’ लिखा है मुहब्बतें
ज़हनों पे हैं निशान उन्हीं के सवालिया

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