पाया सद्सदुभय संयोग
चतुर चातुरी से कर देखो, अमित यत्न उद्योग,
इनका हुआ न है न होगा अन्तर युक्त वियोग।
कोन मिटावे जड़-चेतन का, स्वाभाविक अतियोग,
ठोस-पोल के अलग न होगी, वृथा उपाय-प्रयोग।
अटका यही सकल जीवों से, बाधक-बन्धन रोग,
जीवनजन्म-मरण के द्वारा, रहे कर्म-फल भोग।
जीवनमुक्त महापुरुषों के, मान अमोग नियोग,
धार विवेक बुद्ध बनते हैं, ‘शंकर’ बिरले लोग।